अनुशासन संहिता

 

शील (sīla) साधना की नींव है--नैतिक आचरण. शील के आधार पर ही समाधि (samādhi) —मन की एकाग्रता—का प्रबंधन होता है; एवं प्रज्ञा (paññā) के अभ्यास द्वारा चित्त-शुद्धि होती है--अंतर्ज्ञान.


शील

सभी शिविरार्थियों को शिविर के दौरान पांच शीलों का पालन करना अनिवार्य है:

  • जीव-हत्या से विरत रहेंगे.
  • चोरी से विरत रहेंगे.
  • अब्रह्मचर्य (मैथुन) से विरत रहेंगे.
  • असत्य-भाषण से विरत रहेंगे.
  • नशे के सेवन से विरत रहेंगे.

पुराने साधक, अर्थात ऐसे साधक जिन्होंने आचार्य गोयन्काजी या उनके सहायक आचार्यों के साथ पहले दस-दिवसीय शिविर पूरा कर लिया है, वे अष्टशील का पालन करेंगे:

  • वे दोपहर-बाद (विकाल) भोजन से विरत रहेंगे.
  • श्रृंगार-प्रसाधन एवं मनोरंजन से विरत रहेंगे.
  • ऊंची आरामदेह विलासी शय्या के प्रयोग से विरत रहेंगे.

पुराने साधक सायं 5 बजे केवल नींबू की शिकंजी लेंगे, जबकि नए साधक दूध, चाय, फल ले सकेंगे. रोग आदि की विशिष्ट अवस्था में पुराने साधकों को फलाहार की छूट आचार्य की अनुमति से ही दी जा सकेगी.


समर्पण

साधना-शिविर की अवधि में साधक को अपने आचार्य के प्रति, विपश्यना विधि के प्रति तथा समग्र अनुशासन-संहिता के प्रति पूर्णतया समर्पण करना होगा. समर्पित भाव होने पर ही निष्ठापूर्वक काम हो पाएगा और सविवेक श्रद्धा का भाव जागेगा जो कि साधक की अपनी सुरक्षा और मार्गदर्शन हेतु नितांत आवश्यक है.


सांप्रदायिक कर्मकांड एवं अन्य साधना-विधियों का सम्मिश्रण

शिविर की अवधि में साधक किसी अन्य प्रकार की साधना-विधि व पूजा-पाठ, धूप-दीप, माला-जप, भजन-कीर्तन, व्रत-उपवास आदि कर्मकांडों के अभ्यास का अनुष्ठान न करें. इसका अर्थ अन्य साधनाओं एवं आध्यात्मिक विधियों का अवमूल्यन नहीं है बल्कि विपश्यना को आज़माने के प्रयोग को न्याय दे सकें.

विपश्यना के साथ जानबूझकर किसी और साधना विधि का सम्मिश्रण करना हानिप्रद हो सकता है. यदि कोई संदेह हो या प्रश्न हो तो संचालक आचार्य से मिलकर समाधान कर लेना चाहिए.


आचार्य से मिलना

साधक चाहे तो अपनी समस्याओं के लिए आचार्य से दोपहर 12 से 1 के बीच अकेले में मिल सकता है. रात्रि 9 से 9.30 बजे तक साधना-कक्ष में भी सार्वजनिक प्रश्नोत्तर का अवसर उपलब्ध होगा. ध्यान रहे कि सभी प्रश्न विपश्यना विधि को स्पष्ट समझने के लिए ही हों.


आर्य मौन

शिविर आरंभ होने से दसवें दिन सुबह लगभग दस बजे तक आर्य मौन अर्थात वाणी एवं शरीर से भी मौन का पालन करेंगे. शारीरिक संकेतों से या लिख-पढ़कर विचार-विनिमय करना भी वर्जित है.

अत्यंत आवश्यक हो तब साधकों को अन्न, निवास स्थान, शरीर स्वास्थ्य इत्यादि के लिए व्यवस्थापन से तथा विधि को समझने के लिए आचार्य से बोलने की छूट है. पर ऐसे समय भी कम-से-कम जितना आवश्यक समझें उतना ही बोलें. विपश्यना साधना व्यक्तिगत अभ्यास है. अतः हर एक साधक अपने आप को अकेला समझता हुआ एकांत साधना में ही रत रहे.


पुरुष और महिलाओं का पृथक-पृथक रहना

आवास, अभ्यास, अवकाश और भोजन आदि के समय सभी पुरुषों और महिलाओं को अनिवार्यतः पृथक-पृथक रहना होगा. शिविर के दरम्यान पति-पत्नी तथा सहयोगियों से संपर्क वर्जित है. यही नियम मित्र तथा कुटुंब के अन्य सदस्यों के लिए भी है.


शारीरिक स्पर्श

शिविर के दौरान सभी समय साधक एक दूसरे को स्पर्श बिल्कुल नहीं करेंगे.


योगासन एवं शारीरिक व्यायाम

विपश्यना साधना के साथ योगासन तथा अन्य शारीरिक व्यायाम का संयोग मान्य है, परंतु केंद्र में फिलहाल इनके लिए आवश्यक एकांत की सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. इसलिए साधकों को चाहिए कि वे इनके स्थान पर अवकाश-काल में निर्धारित स्थानों पर टहलने का ही व्यायाम करें.


मंत्राभिषिक्त माला-कंठी, गंडा-ताबीज आदि

साधक उपरोक्त वस्तुएं अपने साथ न लाएं. यदि भूल से ले आए हों तो केंद्र पर प्रवेश करते समय इन्हें दस दिन के लिए व्यवस्थापक को सौंप दें.


नशीली वस्तुएं, धूम्रपान, जर्दा-तंबाकू व दवाएं

देश के कानून के अंतर्गत भांग, गांजा, चरस आदि सभी प्रकार की नशीली वस्तुएं रखना अपराध है. केंद्र में इनका प्रवेश सर्वथा निषिद्ध है. रोगी साधक अपनी सभी दवाएं साथ लाएं एवं उनके बारे में आचार्य को बता दें.


तंबाकू-जर्दा, धूम्रपान

केंद्र की साधना स्थली में धूम्रपान करने अथवा जर्दा-तंबाकू खाने की सख्त मनाही है.


भोजन

विभिन्न समुदाय के लोगों को अपनी रुचि का भोजन उपलब्ध कराने में अनेक व्यावहारिक कठिनाइयां हैं. इसलिए साधकों से प्रार्थना है कि व्यवस्थापकों द्वारा जिस सादे, सात्विक, निरामिष भोजन की व्यवस्था की जाए, उसी में समाधान पाएं. यदि किसी रोगी साधक को चिकित्सक द्वारा कोई विशेष पथ्य बतलाया गया हो तो वह आवेदन-पत्र एवं शिविर में प्रवेश के समय इसकी सूचना व्यवस्थापक को अवश्य दें, जिससे यथासंभव आवश्यक व्यवस्था की जा सके.


वेश-भूषा

शरीर व वस्त्रों की स्वच्छता, वेश-भूषा में सादगी एवं शिष्टाचार आवश्यक है. झीने कपड़े पहनना निषिद्ध है. सूर्यस्नान तथा अर्धनग्नता वर्जित है. महिलाएं कुर्ते के साथ दुपट्टे का उपयोग अवश्य करें. दूसरों की एकाग्रता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है.


बाह्य संपर्क

शिविर के पूरे काल में साधक अपने सारे बाह्य-संपर्क विच्छिन्न रखें. वह केंद्र के परिसर में ही रहे. इस अवधि में किसी से टेलीफोन अथवा पत्र द्वारा भी संपर्क न करे. कोई अतिथि आ जाए तो वह व्यवस्थापकों से ही संपर्क करेगा.


पढ़ना, लिखना एवं संगीत

शिविर के दरम्यान संगीत या गाना सुनना, कोई वाद्य बजाना मना है. शिविर में लिखना-पढ़ना मना होने के कारण साथ कोई लिखने-पढ़ने का साहित्य न लाएं. शिविर के दौरान धार्मिक एवं विपश्यना संबंधी पुस्तकें पढ़ना भी वर्जित है. ध्यान रहे विपश्यना साधना पूर्णतया प्रायोगिक विधि है. लेखन-पठन से इसमें विघ्न ही होता है. अतः नोट्स भी नहीं लिखें.


टेप रिकॉर्डर एवं कैमरा

आचार्य की विशिष्ट अनुमति के बिना केंद्र पर इनका उपयोग सर्वथा वर्जित है.


शिविर का खर्च

विपश्यना जैसी अनमोल साधना की शिक्षा पूर्णतया नि:शुल्क ही दी जाती है. विपश्यना की विशुद्ध परंपरा के अनुसार शिविरों का खर्च इस साधना से लाभान्वित साधकों के कृतज्ञताभरे ऐच्छिक दान से ही चलता है. जिन्होंने आचार्य गोयंकाजी अथवा उनके सहायक आचार्यों द्वारा संचालित कम से कम एक दस दिवसीय शिविर पूरा किया है, केवल ऐसे साधकों से ही दान स्वीकार्य है.

जिन्हें इस विधि द्वारा सुख-शांति मिली है, वे इसी मंगल चेतना से दान देते हैं कि बहुजन के हित-सुख के लिए धर्म-सेवा का यह कार्य चिरकाल तक चलता रहे और अनेकानेक लोगों को ऐसी ही सुख-शांति मिलती रहे. केंद्र के लिए आमदनी का कोई अन्य स्रोत नहीं है. शिविर के आचार्य एवं धर्म-सेवकों को कोई वेतन अथवा मानधन नहीं दिया जाता. वे अपना समय एवं सेवा का दान देते हैं. इससे विपश्यना का प्रसार शुद्ध रूप से, व्यापारीकरण से दूर होता है.

दान चाहे छोटा हो या बड़ा, उसके पीछे केवल लोक-कल्याण की चेतना होनी चाहिए. बहुजन के हित-सुख की मंगल चेतना जागे तो नाम, यश अथवा बदले में अपने लिए विशिष्ट सुविधा पाने का उद्देश्य त्याग कर अपनी श्रद्धा व शक्ति के अनुसार साधक दान दे सकते हैं.


सारांश

अनुशासन संहिता का उद्देश्य स्पष्ट करने के लिए कुछ बिंदु:

  • अन्य साधकों को बाधा न हो इसका पूरा-पूरा ख्याल रखें. अन्य साधकों की ओर से बाधा हो तो उसकी ओर ध्यान न दें.
  • अगर उपरोक्त नियमों में से किसी भी नियम के पीछे क्या कारण है यह कोई साधक न समझ पाएं तो उसे चाहिए कि वह आचार्य से मिलकर अपना संदेह दूर करें.
  • अनुशासन का पालन निष्ठा एवं गंभीरतापूर्वक करने से ही साधना विधि ठीक से समझ पाएंगे एवं उससे पर्याप्त लाभ प्राप्त कर पाएंगे. शिविर में पूरा जोर प्रत्यक्ष काम पर है. इस तरह गंभीरता बनाए रखें जैसे कि आप अकेले एकांत साधना कर रहे हैं. मन भीतर की ओर हो एवं असुविधाओं की एवं बाधाओं की ओर ध्यान बिल्कुल न दें.
  • साधक की विपश्यना में प्रगति उनके अपने सद्गुणों पर एवं इन पांच अंगों—परिश्रम, श्रद्धा, मन की सरलता, आरोग्य एवं प्रज्ञा—पर निर्भर है.

उपरोक्त जानकारी आपकी साधना में अधिक से अधिक सफलता प्रदान करे. शिविर-व्यवस्थापक आपकी सेवा और सहयोग के लिए सदैव उपस्थित हैं एवं आपकी सफलता एवं सुख-शांति की मंगल कामना करते हैं.


समय-सारिणी

यह समय-सारिणी अभ्यास की निरंतरता बनाए रखने के लिए बनाई गई है.

  • प्रातः 4 बजे: सुबह की जगाने की घंटी
  • प्रातः 4.30 से 6.30: हॉल में अथवा अपने निवास पर ध्यान
  • प्रातः 6.30 से 8: नाश्ता ब्रेक
  • सुबह 8 से 9: ध्यान कक्ष (हॉल) में सामूहिक साधना
  • सुबह 9 से 11: आचार्यों की सूचना अनुसार हॉल में अथवा निवास स्थान में ध्यान
  • 11 से 12 दोपहर: लंच ब्रेक
  • 12 दोपहर - 1: विश्रांति और आचार्यों से प्रश्नोत्तर
  • 1 से 2.30: हॉल में अथवा निवास स्थान में ध्यान
  • 2.30 से 3.30: हॉल में सामूहिक साधना
  • 3.30 से 5: आचार्यों की सूचना अनुसार हॉल में अथवा निवास स्थान में ध्यान
  • 5 से 6: चाय और विश्राम
  • शाम 6 से 7: हॉल में सामूहिक साधना
  • शाम 7 से 8.15: हॉल में आचार्यों के प्रवचन
  • 8.15 से 9: हॉल में सामूहिक साधना
  • 9 से 9.30: हॉल में प्रश्नोत्तर का समय
  • रात 9.30: अपने कमरे में विश्रांति और रोशनी बंद

आप प्रस्तावित विपश्यना शिविर में प्रवेश के लिए आवेदन कर सकते हैं.